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लेखनी कहानी -05-Feb-2023 एक अनोखी प्रेम कहानी

भाग : 7 
सपना अभी तक समझ नहीं पाई थी कि शिव "किस" करने के लिए उसे रायपुर क्यों लेकर आया था । यह काम तो मोतिया गांव में भी कर सकता था । जब उससे रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया 
"एक बात पूछें" ? 
"एक नहीं दो पूछिए" शिव मुस्कुराते हुए बोला 
"एक किस के लिए आप हमें इतनी दूर क्यों लाये ? मोतिया में भी तो कर सकते थे" ? 

सपना के इस प्रश्न पर शिव को हंसी आ गई और इससे सपना चिढ गई । सपना बड़ी जल्दी चिढ जाती थी इसलिए शिव ने उसका नाम "नकचढी" रख दिया था । सपना थोड़ी गुस्सा हो गई और गुस्से से बोली "इसमें हंसने की क्या बात है ? हमने ऐसा क्या पूछ लिया जो आपको हंसी आ गई" ? 
शिव को पता था कि सपना थोड़ी तुनकमिजाज है , बड़ी जल्दी "तुनक" जाती है इसलिए उसे सपना को चिढाने में और मजा आता था । वह चुप रहा । अब सपना ने उसके गले में अपनी बांहों का हार डालते हुए आंखों से प्रेम बरसाते हुए बोली "बता दो न प्लीज" । 
इस अदा पर शिव तो क्या कोई भी कुरबान हो जाता । शिव कहने लगा 
"आपने हमें किसी सार्वजनिक जगह पर आपको 'किस' करके दिखाने का चैलेंज दिया था । यदि मैं यह काम आपके गांव में करता तो इससे आपकी और आपके परिवार की बदनामी हो सकती थी । मुझे तो कोई जानता नहीं इस गांव में , लेकिन आपको तो जानते हैं लोग । मैं ऐसा कोई काम कैसे कर सकता हूं जिससे आपके परिवार को नीचा देखना पड़े । इसलिए मैंने यह शहर चुना । यहां तुम भी अजनबी और मैं भी अजनबी । फिर बदनामी किसकी ? और अनजान जगह होने के कारण यहां पर यह काम "बेधड़क" हो भी गया । क्यों , एक तीर से दो शिकार हो गये ना" ? शिव का रोम रोम प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था । 
सपना के पास एक ही दिल था जिसे वह पहले ही शिव को दे बैठी थी । यदि उसके पास हजार दिल होते तो वह सबके सब शिव को दे देती । वह गदगद हो गई ।

"अच्छा , तो अब हमें कहां ले जा रहे हो" ? सपना ने शिव से पूछा 
"पास में ही 'हलकेश्वर महादेव' जी का मंदिर है , वहां चलते हैं" 
"ओके, जहां आप ले जाना चाहो, हम तैयार हैं । जन्नत में भी और जहन्नुम में भी । वैसे एक बात कहूं ? आपका साथ हो तो जहन्नुम भी जन्नत ही है मेरे लिए" सपना शिव से कसकर लिपट गई । 
"अच्छा जी, हम पर इतना भरोसा" ? शिव चुहल करने लगा 
"खुद से भी ज्यादा" सपना किसी दूसरी दुनिया में सैर करते हुए बोली 
"और अगर हमने आपके विश्वास को ठेस लगाई तो" ? 
"अब तो तन मन सब कुछ आपका ही है । अब क्या ठेस लगाओगे आप" ? सपना ने अपने गाल शिव की पीठ पर टिका दिये । 
"यदि मैं अपनी निशानी तुम में छोड़कर कहीं चला जाऊं तो" ? शिव उसे छेड़ता हुआ बोला 
"मैं जिन्दगी भर आपकी मीरा बनकर पूजा करूंगी और आपकी निशानी को आपका वरदान समझूंगी" । सपना शिव से चिपक गई  । शिव भी सपना की बातें सुनकर अभिभूत हो गया । दोनों हलकेश्वर महादेव मंदिर आ गये 

"ये तो बताओ कि इसे हलकेश्वर महादेव क्यों कहते हैं" ? सपना के प्रश्न शुरू हो गये 
"इस मंदिर में जो लोग आते हैं वे अपने समस्त पाप उतार कर यहां रख देते हैं । इससे वे स्वयं को हल्का महसूस करते हैं । महादेव जी अपने भक्तों को "पाप मुक्त" करके उन्हें हल्का कर देते हैं इसलिए वे 'हलकेश्वर महादेव' कहलाते हैं । सच क्या है मुझे नहीं पता , पर मैं ऐसा सोचता हूं" शिव अंदाजे से बोला 
"आपकी सोच बड़ी तार्किक होती है और वही सच लगती है । हो सकता है कि सच कुछ और हो, पर आप जो कारण बताते हैं वह सही जान पड़ता है" सपना शिव की प्रशस्ति पर उतर आई । 
वे दोनों मंदिर में आ गये । यह मंदिर उत्तर परमार काल का था मगर इस मंदिर की स्थापत्य कला परमार कालीन ही थी । सन 1000 से 1200 ईस्वी को परमार काल कहा जाता है । इस अवधि में उज्जैन में परमार वंश के अनेक राजाओं ने राज्य किया था पर राजा भोज सबसे प्रसिद्ध राजा हुए थे । वे स्थापत्य कला के बहुत मर्मज्ञ थे । उन्होंने स्थापत्य कला से संबंधित एक पुस्तक "समरांगण सूत्रधार" लिखी जिसमें मंदरों एवं अन्य भवनों की स्थापत्य कला का विवरण है । इस मंदिर में भी इसी के अनुरूप निर्माण हुआ है । वह सपना को तोरण द्वार , मण्डप , गर्भ गृह, प्रदक्षिणा पथ , विग्रह के बारे में बताने लगा । 

मंदिर की दीवारों पर अनेक कलाकृतियां बनी हुई थी । एक कलाकृति के सामने आकर सपना रुक गई और बोली "ये कैसा दृश्य है ? इसमें शंकर भगवान माता पार्वती के चरणों में लेटे हैं" ये कोई कपोल कल्पित तो नहीं है ना" ? सपना के चेहरे पर अनेक प्रश्न उभर रहे थे । 
शिव ने उस कलाकृति को गौर से देखा । मां पार्वती बहुत गुस्से में थीं । उनके हाथ में खड़ग थी और वे वार करने की मुद्रा में थीं । शिवजी उनके चरणों में पड़े हुए थे । शिवजी की छाती पर मां पार्वती के पैर थे जैसे वे अपने कदमों से उन्हें रौंदना चाहती थीं । यह दृश्य अनेक जगह देखा जा सकता है । शिव ने उसे देखकर कहा 
"इस बारे में दो आख्यान हैं देवी । एक आख्यान के अनुसार जब जालंधर राक्षस अपनी ताकत के घमंड में संपूर्ण विश्व को विजित कर रहा था । तब उसने माता पार्वती को देखा । माता पार्वती की सुन्दरता पर वह बुरी तरह रीझ गया था । माता पार्वती को भोगने के उद्देश्य से उसने भगवान शिव का वेष बनाया और कैलाश पर्वत पर आ गया । भगवान शिव तब कैलाश पर नहीं थे । माता पार्वती दुष्ट जालंधर को पहचान गई और तब क्रोध में आकर उन्होंने शिवजी का वेषधारी जालंधर पर आक्रमण कर दिया । यह दृश्य वही है । 
एक दूसरे आख्यान के अनुसार एक राक्षस ब्रह्मा जी से वरदान पाकर मदमस्त हो गया था । उसके अत्याचारों से संपूर्ण ब्रह्मांड डोल रहा था । तब उसे मारने के लिए मां गौरी ने काली का रूप धारण किया था । उन्होंने क्रोध में आकर समस्त राक्षसों का वध कर दिया था मगर उनका क्रोध कम नहीं हो रहा था और वे लगातार अट्टहास कर रही थीं । उनके उस रूप से सभी लोग भयभीत थे । तब भगवान शंकर उन्हें शान्त करने के लिए उनके चरणों में लेट गये थे । इस दृश्य को तब का बताते हैं लोग । यह दोनों आख्यान मैंने आपको बता दिये हैं देवी" । 

सपना और शिव उस मंदिर पर उकेरी गई विभिन्न कलाकृतियां देखने लगे । यह मंदिर का सौन्दर्य ही था कि इस मंदिर की दीवारों, खंभों और छत पर अनेक मूर्तियां उभरी हुईं थी । इन मूर्तियों में कामशास्त्र के अनुरूप रति करती हुई नायिका और नायक को दिखाया गया था । उनके साथ उनकी सखियां भी थी जो उनकी कामक्रीड़ा को और भी उद्दीप्त कर रही थीं । रति क्रिया के समस्त 64 आसनों को उन मूर्तियों के द्वारा दिखाया गया था । सपना उन काम क्रीड़ा में लिप्त मूर्तियों को देखकर बहुत आश्चर्य चकित हुई । उसकी जिज्ञासा इस बात में थी कि इन रति क्रियाओं में लिप्त मूर्तियों को इस पावन मंदिर में क्यों बनाया गया है । उसने शिव से पूछ ही लिया 
"इन रति रत मूर्तियों को इस मंदिर में क्यों रखा गया है ? इसके पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है" ? 
"मेरी समझ से तो इन मूर्तियों को मंदिर में दर्शाने के पीछे एक ही उद्देश्य हो सकता है कि इन मैथुन मुद्राओं वाली आकृतियों को यहां इसलिए उकेरा गया है कि इसमें यह बताया गया है कि संसार में सबसे अधिक आनंद "मैथुन क्रिया" में ही आता है । इससे ज्यादा आनंद अन्य किसी क्रिया में नहीं है । यह शाश्वत सत्य है इसीलिए नर और नारी इस क्रिया में संलिप्त रहते हैं । "भोग" का यह सर्वोत्तम उदाहरण है । पर यहां पर यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि आनंद के "उन चंद" पलों में भी ईश्वर को मत भूलो । उसे सदैव याद रखो । वास्तविक सत्ता उसी की है और वह परम पिता परमेश्वर है जिसे हमें सदैव ध्यान रखना है । जैसा कि मैंने जड़ भरत के आख्यान में बताया था कि अंत समय में जो व्यक्ति जिसका ध्यान करता है अगली योनि वह उसी की पाता है । यहां यह बताया गया है कि मनुष्य जीवन क्षणभंगुर है इसलिए उसे आनंद के सर्वोत्तम पलों में भी ईश्वर का ध्यान करना चाहिए । शायद यही कारण है इन मैथुन मूर्तियों को यहां दिखाने का । मेरी समझ में जो आया , मैंने उसी के अनुरूप बताया है । चाहो तो पंडित जी से पूछ लो" शिव ने मुस्कुराते हुए कहा 
"पागल हो गये हो क्या जो ऐसी बातें कर रहे हो ? मैं पंडित जी से पूछूंगी तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे" ? 
"यही कि यह लड़की कितनी रसिक है जो इन मिथुन मूर्तियों के बारे में जानने की लालसा रखती है" । शिव शरारत से बोला । इस पर सपना मुक्का तानकर उसे मारने के लिए दौड़ पड़ी पर शिव कहां हाथ आने वाले थे । 

मंदिर में अनेक मूर्तियां और थीं । सपना उनके बारे में पूछने लगीं कि ये मूर्तियां क्या संदेश दे रही हैं । शिव ने बताया 
"ये मूर्तियां अलग अलग क्रियाओं को दर्शा रही हैं । जैसे इस ब्लॉक में देखो । इस ब्लॉक की मूर्तियों में नायिका बन संवर कर तैयार हो रही है । ये पहली मूर्ति है जिसमें नायिका स्नान कर रही है । इसमें वह लोटे से अपने ऊपर जल डाल रही है । उसका वक्षस्थल अनावृत है किन्तु वह अधोवस्त्र पहने हुए है । पानी की धार सिर पर पड़ते हुए और फिर सिर पर गिरने के पश्चात उसे बिखरते हुए दर्शाया गया है । उसके अनावृत वक्षस्थल को देखकर पशु पक्षी चकित होकर उसे निहार रहे हैं और अपने नयनों से उसके सौन्दर्य की प्रशंसा कर रहे हैं ।

अगली मूर्ति में नायिका अपने गीले केशों को तौलियानुमा वस्त्र में लपेटे हुए दर्शायी है । अगर इन बालों के अंतिम सिरे को ध्यान से देखोगी तो पता चलेगा कि उनमें से पानी की बूंदें गिर रही है जिसे एक पक्षी अपनी चोंच से पी रहा है । वो देखो, एक कोने में पक्षी पानी को चोंच से पीता दिख रहा है ।
चूंकि नायिका अभी स्नान करके आई है इसलिए उसका वक्षस्थल अभी अनावृत है किन्तु उसका अधोवस्त्र पानी से भीग कर उसके नितंबों से चिपक गया है जिसमें से उसके उन्नत नितंब उभर कर स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं । जघन स्थल पर अधोवस्त्र की कुछ सिलवटें बना दी गई हैं जिनसे उसका "मदन मंदिर" ढंक गया है लेकिन जांघें स्पष्ट दर्शनीय हैं । 

अगली मूर्ति में नायिका अपने केशों को सुखा रही है । वह कमर से एक ओर झुकी हुई है और बालों को खोलकर किसी यंत्र से उन्हें सुखा रही है । बाल कुछ गीले हैं कुछ सूख गये हैं । जो सूख गये हैं वे हवा में उड़ रहे हैं । उसके एक हाथ में कंघी है जो उसके बाल बनाने के लिए प्रयोग होगी । इसको गौर से देखोगी तो पता चलेगा कि इसने एक तौलिया कमर पर बांध लिया है जिससे कटि से नीचे का भाग छुप जाये । क्या तुम बता सकती हो कि इसने अभी तक उत्तरीय अर्थात कंचुकी क्यों नहीं पहनी है" ? शिव ने सपना की ओर देखकर पूछा । सपना ने एक अनजान की तरह गर्दन इंकार की मुद्रा में हिला दी । शिव ने वर्णन करते हुए कहा 
"बड़ी सीधी सी बात है । यह नायिका अपनी भुजमूल अर्थात बगल या कांख में पहले चंदन का लेप लगायेगी । आजकल लड़कियां "डियो" का प्रयोग करती हैं न कांख में लगाने के लिए, जिससे कांख में से पसीने की बदबू नहीं आये । तो उस समय ये नायिका भुजमूल में चंदन का लेप लगाया करती थीं । पहले वह अपनी बगल में चंदन का लेप करेगी उसके बाद कंचुकी बांधेगी । देखो, अगली मूर्ति में वह चंदन घिस रही है और उसने एक बांह ऊपर कर रखी है जो यह बता रही है कि वह भुजमूल में चंदन लगाने की तैयारी कर रही है । 

"अगली मूर्ति को देखो । इसमें नायिका के हाथ में क्या है बताओ" ? 
सपना ने उस मूर्ति को गौर से देखा । उसे नायिका की उंगलियों में एक बहुत पतली सी कोई चीज दिखाई दी मगर वह क्या है , सपना पहचान ना सकी । इसने इंकार की मुद्रा में सिर हिला दिया । तब शिव ने उसे हंसते हुए बताया । 
"नायिका ने अपने दोनों भुजमूलों में चंदन का लेप लगा लिया है पर पसीना तो उसके सीने में भी आयेगा ना । दोनों उरोजों के मध्य भाग में रिक्त स्थान पर यह पसीना जम जाता है और इससे भी दुर्गंध आने लगती है । नायिका अपने नायक को अच्छी तरह जानती है कि उसे दुर्गंध बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है इसलिए वह यहां दोनों वक्षों और दोनों वक्षों के मध्य रिक्त स्थान पर "केसर" का लेप लगाती है । उसके हाथ में वह पतली सी वस्तु केसर है जिसका लेप यहां पर करने वाली है । केसर के लेप से सुगंध तो आयेगी ही , साथ में केसर उरोजों को सख्त भी बनाती है । इसलिए वह यहां चंदन की जगह केसर का प्रयोग करती है" । 

सपना शिव को आश्चर्य से देखने लगी "आपको कैसे पता जो आप इस तरह से बता रहे हैं जैसे इन नायिकाओं ने आपके सामने श्रंगार किया हो" ? 
"मेरी नायिका रोज मेरे सपनों में आकर श्रंगार करती है , इसलिए मैं जानता हूं" शिव ने सपना को छेड़ दिया । सपना शर्म से लाल हो गई 
"आपके सपनों में हम ऐसे आते हैं" ? उसकी आंखों में जिज्ञासा, प्यार और उलाहना तीनों थे । 
"हमारे सपनों में तो आप किन किन मुद्राओं में आती हो सपना रानी कि क्या बताऊं ? अगर बता दिया तो तुम मुझे यहीं मारने लग जाओगी" कहते कहते हंस पड़ा शिव । 
"हट, बदमाश कहीं के । आप हमें ऐसे देखते हो सपनों में" ? वह नाराज होने का उपक्रम करने लगी 
"अरे नाराज क्यों होती हो, मैं तो मजाक कर रहा था । आप तो पूरे कपड़ों में आती हो मेरे सपनों में । अब तो खुश" ? 

सपना के अधरों पर मुस्कान तैर गई । दोनों अगली मूर्ति देखने लगे । 

(यदि पाठकों को इन मूर्तियों का विश्लेषण पसंद आ रहा हो तो और भी बहुत सारी मूर्तियां हैं , उनका विश्लेषण करूं , अन्यथा आगे बढ जाऊं ? जैसा भी आपका विचार हो, टिप्पणी में अवश्य लिखें जिससे कि अगला भाग तदनुसार लिखा जा सके) 

श्री हरि 
10.2.23 

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6 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2023 11:45 AM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Feb-2023 04:38 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम

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अदिति झा

11-Feb-2023 12:05 PM

V nice 👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

11-Feb-2023 10:55 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम 💐💐🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

10-Feb-2023 08:57 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

10-Feb-2023 11:48 PM

धन्यवाद जी

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